
Geeta Darshan Vol-18 # Ep.214
Episode · 4 Plays
Episode · 4 Plays · 1:26:25 · Nov 1, 2023
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DATES AND PLACES : JUL 21 - AUG 10 1975 Eighteenth Chapter from the series of 18 Chapters - Geeta Darshan Vol-18 by Osho. These discourses were given during JUL 21 – AUG 10 1975. --------------------------------------- यदहंकारमाश्रित्य न योत्स्य इति मन्यसे।मिथ्यैष व्यवसायस्ते प्रकृतिस्त्वां नियोक्ष्यति।। 59।।स्वभावजेन कौन्तेय निबद्धः स्वेन कर्मणा।कर्तुं नेच्छसि यन्मोहात् करिष्यवशोऽपि तत्।। 60।।ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।। 61।।तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत।तत्प्रसादात् परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम।। 62।।इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया।विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु।। 63।।और जो तू अहंकार को अवलंबन करके ऐसे मानता है कि मैं युद्ध नहीं करूंगा, तो यह तेरा निश्चय मिथ्या है, क्योंकि क्षत्रियपन का स्वभाव तेरे को जबरदस्ती युद्ध में लगा देगा।और हे अर्जुन, जिस कर्म को तू मोह से नहीं करना चाहता है, उसको भी अपने पूर्वकृत स्वाभाविक कर्म से बंधा हुआ परवश होकर करेगा।क्योंकि हे अर्जुन, शरीररूप यंत्र में आरूढ़ हुए, संपूर्ण प्राणियों को परमेश्वर अपनी माया से, उनके कर्मों के अनुसार भ्रमाता हुआ, सब भूत-प्राणियों के हृदय में स्थित है।इसलिए हे भारत, सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही अनन्य शरण को प्राप्त हो, उस परमात्मा की कृपा से ही परम शांति को और सनातन परम धाम को प्राप्त होगा।इस प्रकार यह गोपनीय से भी अति गोपनीय ज्ञान मैंने तेरे लिए कहा। इस रहस्ययुक्त ज्ञान को संपूर्णता से अच्छी प्रकार विचार करके, फिर तू जैसा चाहता है, वैसा ही कर।
1h 26m 25s · Nov 1, 2023
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