
Geeta Darshan Vol-18 # Ep.213
Episode · 6 Plays
Episode · 6 Plays · 1:18:26 · Oct 31, 2023
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DATES AND PLACES : JUL 21 - AUG 10 1975 Eighteenth Chapter from the series of 18 Chapters - Geeta Darshan Vol-18 by Osho. These discourses were given during JUL 21 – AUG 10 1975. --------------------------------------- ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति।समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्।। 54।।भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः।ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्।। 55।।सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः।मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम्।। 56।।चेतसा सर्वकर्माणि मयि संन्यस्य मत्परः।बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चित्तः सततं भव।। 57।।मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।अथ चेत्त्वमहंकारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि।। 58।।फिर वह सच्चिदानंदघन ब्रह्म में एकीभाव से स्थित हुआ प्रसन्नचित्त वाला पुरुष न तो किसी वस्तु के लिए शोक करता है और न किसी की आकांक्षा ही करता है एवं सब भूतों में समभाव हुआ मेरी परा-भक्ति को प्राप्त होता है।और उस परा-भक्ति के द्वारा मेरे को तत्व से भली प्रकार जानता है कि मैं जो और जिस प्रभाव वाला हूं तथा उस भक्ति से मेरे को तत्व से जानकर तत्काल ही मेरे में प्रविष्ट हो जाता है।और मेरे परायण हुआ निष्काम कर्मयोगी संपूर्ण कर्मों को सदा करता हुआ भी मेरी कृपा से सनातन अविनाशी परम पद को प्राप्त हो जाता है।इसलिए हे अर्जुन, तू सब कर्मों को मन से मेरे में अर्पण करके, मेरे परायण हुआ समत्वबुद्धिरूप निष्काम कर्मयोग को आलंबन करके निरंतर मेरे में चित्त वाला हो।इस प्रकार तू मेरे में निरंतर मन वाला हुआ, मेरी कृपा से जन्म-मृत्यु आदि सब संकटों को अनायास ही तर जाएगा। और यदि अहंकार के कारण मेरे वचनों को नहीं सुनेगा, तो नष्ट हो जाएगा अर्थात परमार्थ से भ्रष्ट हो जाएगा।
1h 18m 26s · Oct 31, 2023
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