
Swar Hi Ishwar Hai (स्वर ही ईश्वर है)
Episode · 252 Plays
Episode · 252 Plays · 2:14 · Jul 23, 2020
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स्वर सुनकर माँ से ही तो हम मातृभाषा सीखते हैं।   स्वर सुनकर ही तो हम ‘अबोध बालक’ से बड़े हो जाने की पदवी पाते हैं !   स्वर ही तो ज्ञान का भंडार है! जैसा सुनते हैं, वैसे ही बनते जाते हैं। स्वर हमारे व्यक्तित्व की पहचान है।   ऐसे में शोर सुनकर, एक साथ स्वर मिले जानकर अशांत मन कैसा ठौर पता है !    सुनने में बहुत आसान लगता है लेकिन स्वर के हर शब्द को अपनाना कितना कठिन है।      और अपना लिया यदि एक स्वर तो उसे बदल पाना भी बहुत कठिन है !     --- स्वर से बनी मातृभाषा       स्वर ही ईश्वर है !      स्वर ने दिया हर नए धर्म को जन्म !      स्वर ही करता दो भावों का संगम !      स्वर ने ही छेड़ा महासंग्राम और स्वर से ही बनी सरगम !       कितनी सुंदर लगती है सरगम ! संगीत का साम-स्वर कितना सुखद लगता है !       ऐसे में कान जो सुनते हैं,       आँखें जो देखती हैं, जिव्हा जैसा स्वाद पाती है , नाक जैसे सूंघता है, त्वचा जैसे महसूस करती है         वैसा ही मन समझना शुरू कर देता है !          यही  स्वर का उद्गम है ! एक स्वर से दूसरा स्वर बनता है ,         और इन सब स्वरों से यह प्रकृति और प्रकृति ही ईश्वर है !                  प्रकृति ही स्वर लहरी है           ऐसे में स्वर ही ईश्वर है।          और इस ईश्वर को साम स्वर दे सकें यदि हम  तो देखो !           जीवन कितना सुन्दर है।
2m 14s · Jul 23, 2020
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