
Jeevan Ki Jai | Maithlisharan Gupt
Episode · 0 Play
Episode · 2:04 · Dec 12, 2025
About
जीवन की जय। म ैथिलीशरण गुप्तमृषा मृत्यु का भय है,जीवन की ही जय है।जीवन ही जड़ जमा रहा है,निज नव वैभव कमा रहा है,पिता-पुत्र में समा रहा है,यह आत्मा अक्षय है,जीवन की ही जय है!नया जन्म ही जग पाता है,मरण मूढ़-सा रह जाता है,एक बीज सौ उपजाता है,स्रष्टा बड़ा सदय है,जीवन की ही जय है।जीवन पर सौ बार मरूँ मैं,क्या इस धन को गाड़ धरूँ मैं,यदि न उचित उपयोग करूँ मैं,तो फिर महा प्रलय है,जीवन की ही जय है।
2m 4s · Dec 12, 2025
© 2025 Podcaster