
HAKEEM AZMAL KHA - Yaad Karo Kurbani
Episode · 5 Plays
Episode · 5 Plays · 1:00:56 · Feb 11, 2023
About
हकीम अजमल ख़ान या अजमल ख़ान एक यूनानी चिकित्सक और भारतीय मुस्लिम राष्ट्रवादी राजनेता एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में दिल्ली में तिब्बिया कॉलेज की स्थापना करके भारत में यूनानी चिकित्सा का पुनरुत्थान करने के लिए जाना जाता है और साथ ही एक रसायनज्ञ डॉ॰ सलीमुज्ज़मन सिद्दीकी को सामने लाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है जिनके यूनानी चिकित्सा में उपयोग होने वाले महत्वपूर्ण चिकित्सीय पौधों पर किये गए आगामी शोधों ने इसे एक नई दिशा प्रदान की थी।वे गाँधी जी के निकट सहयोगी थे। उन्होने असहयोग आन्दोलन (सत्याग्रह) में भाग लिया था, खिलाफत आन्दोलन का नेतृत्व किया था, साथ ही वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी निर्वाचित हुये थे, तथा 1921 में अहमदाबाद में आयोजित कांग्रेस के सत्र की अध्यक्षता भी की थी वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बनने वाले पांचवें मुस्लिम थे। वे जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संस्थापकों में से एक थे और 1920 में इसके कुलाधिपति बने तथा 1927 में अपनी मृत्यु तक इसी पद पर बने रहे हकीम अजमल ख़ान साहिब का जन्म 1863 में हुआ था। अजमल ख़ान के पूर्वज, जो प्रसिद्ध चिकित्सक थे, भारत में मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के शासनकाल में भारत आए थे। हकीम अजमल ख़ान के परिवार के सभी सदस्य यूनानी हकीम थे। उनका परिवार मुग़ल शासकों के समय से चिकित्सा की इस प्राचीन शैली का अभ्यास करता आ रहा था। वे उस ज़माने में दिल्ली के रईस के रूप में जाने जाते थे। उनके दादा हकीम शरीफ ख़ान मुग़ल शासक शाह आलम के चिकित्सक थे और उन्होंने शरीफ मंजिल का निर्माण करवाया था, जो एक अस्पताल और महाविद्यालय था जहाँ यूनानी चिकित्सा की पढ़ाई की जाती थी। उन्होंने अपने परिवार के बुजुर्गों, जिनमें से सभी प्रसिद्ध चिकित्सक थे, की देखरेख में चिकित्सा की पढ़ाई शुरु करने से पहले, अपने बचपन में कुरान को अपने ह्रदय में उतारा और पारंपरिक इस्लामिक ज्ञान की शिक्षा भी प्राप्त की जिसमें अरबी और फारसी शामिल थी। उनके दादा हकीम शरीफ ख़ान तिब्ब-इ-यूनानी या यूनानी चिकित्सा के अभ्यास के प्रचार पर जोर देते थे और इस उद्देश्य के लिए उन्होंने शरीफ मंजिल नामक अस्पताल रूपी कॉलेज की स्थापना की, जो पूरे उपमहाद्वीप में सबसे लोकोपकारी यूनानी अस्पताल के रूप में प्रसिद्ध था जहां गरीब मरीजों से कोई भी शुल्क नहीं लिया जाता था। योग्य होने पर हकीम अजमल ख़ान को 1892 में रामपुर के नवाब का प्रमुख चिकित्सक नियुक्त किया गया. कोई भी प्रशस्ति हकीम साहेब की लिए बहुत बड़ी नहीं है, उन्हें "मसीहा-ए-हिंद" और "बेताज बादशाह" कहा जाता था। उनके पिता की तरह उनके इलाज में भी चमत्कारिक असर था और ऐसा माना जाता था कि उनके पास कोई जादुई चिकित्सकीय खजाना था, जिसका राज़ केवल वे ही जानते थे। चिकित्सा में उनकी बुद्धि इतनी कुशाग्र थी कि यह कहा जाता था कि वे केवल इन्सान का चेहरा देखकर उसकी किसी भी बीमारी का पता लगा लेते थे। हकीम अजमल ख़ान मरीज को एक बार देखने के 1000 रुपये लेते थे। शहर से बाहर जाने पर यह उनका दैनिक शुल्क था, लेकिन यदि मरीज उनके पास दिल्ली आये तो उसका इलाज मुफ्त किया जाता था, फिर चाहे वह महाराजा ही क्यों न हों. हकीम मोहम्मद अजमल ख़ान अपने समय के सबसे कुशाग्र और बहुमुखी व्यक्तित्व के रूप में प्रसिद्ध हुए. भारत की आजादी, राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सद्भाव के क्षेत्रों में उनका योगदान अतुलनीय है। वे एक सशक्त राजनीतिज्ञ और उच्चतम क्षमता के शिक्षाविद थे। हकीम अजमल ने यूनानी चिकित्सा की देशी प्रणाली के विकास और विस्तार में काफी दिलचस्पी ली. हकीम अजमल ख़ान ने शोध और अभ्यास का विस्तार करने के लिए तीन महत्वपूर्ण संस्थाओं का निर्माण करवाया, दिल्ली में सेंट्रल कॉलेज, हिन्दुस्तानी दवाखाना तथा आयुर्वेदिक और यूनानी तिब्बिया कॉलेज; और इस प्रकार भारत में चिकित्सा की यूनानी प्रणाली को विलुप्त होने से बचाने में मदद की. यूनानी चिकित्सा के क्षेत्र में उनके अथक प्रयास ने ब्रिटिश शासन में समाप्ति की कगार पर पहुंच चुकी भारतीय यूनानी चिकित्सा प्रणाली में नई ऊर्जा और जीवन का संचार किया। जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संस्थापकों में से एक, अजमल ख़ान को 22 नवम्बर 1920 में इसका प्रथम कुलाधिपति चुना गया और 1927 में अपनी मृत्यु तक उन्होंने इस पद को संभाला. इस अवधि के दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय को अलीगढ़ से दिल्ली स्थानांतरित करवाया और आर्थिक तथा अन्य संकटों के दौरान व्यापक रूप से कोष इकट्ठा करके और प्रायः खुद के धन का उपयोग करके उन्होंने इसकी सहायता भी की.
1h 56s · Feb 11, 2023
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