
Geeta Darshan Vol-18 # Ep.212
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Episode · 1 Play · 1:28:08 · Oct 31, 2023
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DATES AND PLACES : JUL 21 - AUG 10 1975 Eighteenth Chapter from the series of 18 Chapters - Geeta Darshan Vol-18 by Osho. These discourses were given during JUL 21 – AUG 10 1975. --------------------------------------- असक्तबुद्धिः सर्वत्र जितात्मा विगतस्पृहः।नैष्कर्म्यसिद्धिं परमां संन्यासेनाधिगच्छति।। 49।।सिद्धिं प्राप्तो यथा ब्रह्म तथाप्नोति निबोध मे।समासेनैव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा।। 50।।बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो धृत्यात्मानं नियम्य च।शब्दादीन्विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च।। 51।।विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः।ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः।। 52।।अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्।विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते।। 53।।तथा हे अर्जुन, सर्वत्र आसक्तिरहित बुद्धिवाला, स्पृहारहित और जीते हुए अंतःकरण वाला पुरुष संन्यास के द्वारा भी परम नैष्कर्म्य सिद्धि को प्राप्त होता है अर्थात क्रियारहित हुआ शुद्ध सच्चिदानंदघन परमात्मा की प्राप्ति रूप परम सिद्धि को प्राप्त होता है।इसलिए हे कुंतीपुत्र, अंतःकरण की शुद्धिरूप सिद्धि को प्राप्त हुआ पुरुष जैसे सच्चिदानंदघन ब्रह्म को प्राप्त होता है तथा जो तत्वज्ञान की परा-निष्ठा है, उसको भी तू मेरे से संक्षेप में जान।हे अर्जुन, विशुद्ध बुद्धि से युक्त, एकांत और शुद्ध देश का सेवन करने वाला तथा मिताहारी, जीते हुए मन, वाणी व शरीर वाला और दृढ़ वैराग्य को भली प्रकार प्राप्त हुआ पुरुष निरंतर ध्यान-योग के परायण हुआ सात्विक धारणा से अंतःकरण को वश में करके तथा शब्दादिक विषयों को त्यागकर और राग-द्वेष को नष्ट करके तथा अहंकार, बल, घमंड, काम, क्रोध और परिग्रह को त्यागकर ममतारहित और शांत हुआ सच्चिदानंदघन ब्रह्म में एकीभाव होने के लिए योग्य होता है।
1h 28m 8s · Oct 31, 2023
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