
Geeta Darshan Vol-11 # Ep.130
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Episode · 1:24:10 · Sep 19, 2023
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DATES AND PLACES : JAN 03-14 1973 Eleventh Chapter from the series of 18 Chapters - Geeta Darshan Vol-11 by Osho. These discourses were given during JAN 03-14 1973. --------------------------------------- दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता।यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः।। 12।।तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा।अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा।। 13।।ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनंजयः।प्रणम्य शिरसा देवं कृताञ्जलिरभाषत।। 14।।अर्जुन उवाचपश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसंघान्।ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थमृषींश्च सर्वानुरगांश्चदिव्यान्।। 15।।अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्।नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप।। 16।।किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च तेजोराशिं सर्वतो दीप्तिमन्तम्।पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यंसमन्ताद्दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम्।। 17।।और हे राजन्, आकाश में हजार सूर्यों के एक साथ उदय होने से उत्पन्न हुआ जो प्रकाश हो, वह भी उस विश्वरूप परमात्मा के प्रकाश के सदृश कदाचित ही होवे।ऐसे आश्चर्यमय रूप को देखते हुए पांडुपुत्र अर्जुन ने उस काल में अनेक प्रकार से विभक्त हुए अर्थात पृथक-पृथक हुए संपूर्ण जगत को उस देवों के देव श्रीकृष्ण भगवान के शरीर में एक जगह स्थित देखा।और उसके अनंतर वह आश्चर्य से युक्त हुआ हर्षित रोमों वाला अर्जुन, विश्वरूप परमात्मा को श्रद्धा-भक्ति सहित सिर से प्रणाम करके, हाथ जोड़े हुए बोला।हे देव, आपके शरीर में संपूर्ण देवों को तथा अनेक भूतों के समुदायों को और कमल के आसन पर बैठे हुए ब्रह्मा को तथा महादेव को और संपूर्ण ऋषियों को तथा दिव्य सर्पों को देखता हूं।और हे संपूर्ण विश्व के स्वामिन्, आपको अनेक हाथ, पेट, मुख और नेत्रों से युक्त तथा सब ओर से अनंत रूपों वाला देखता हूं। हे विश्वरूप, आपके न अंत को देखता हूं, तथा न मध्य को और न आदि को ही देखता हूं।और मैं आपका मुकुटयुक्त, गदायुक्त और चक्रयुक्त तथा सब ओर से प्रकाशमान तेज का पुंज, प्रज्वलित अग्नि और सूर्य के सदृश ज्योतियुक्त, देखने में अति गहन और अप्रमेय स्वरूप सब ओर से देखता हूं।
1h 24m 10s · Sep 19, 2023
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