
सजल है कितना सवेरा - महादेवी वर्मा
Hindi Poems by Vivek (विवेक की हिंदी कवितायेँ)
Episode · 18 Plays
Episode · 18 Plays · 2:15 · Jun 4, 2021
About
महादेवीजी का शब्दों का चुनाव तो विलक्षण था ही परन्तु कविता के माध्यम से एक रंग बिरंगा चित्र बना देने की उनकी शक्ति अतुलनीय थी उनकी कविताओं में एक अलग ही सम्मोहन शक्ति है जो पाठकों और श्रोताओं को अपनी ओर आकर्षित कर एक मायानगरी में ले जाती है जहां आप भावनाओं की निर्झरिणी में गोते लगाते रहने के लिए विवश हो जाते हैं सजल है कितना सवेरा गहन तम में जो कथा इसकी न भूला अश्रु उस नभ के, चढ़ा शिर फूल फूला झूम-झुक-झुक कह रहा हर श्वास तेरा राख से अंगार तारे झर चले हैं धूप बंदी रंग के निर्झर खुले हैं खोलता है पंख रूपों में अंधेरा कल्पना निज देखकर साकार होते और उसमें प्राण का संचार होते सो गया रख तूलिका दीपक चितेरा अलस पलकों से पता अपना मिटाकर मृदुल तिनकों में व्यथा अपनी छिपाकर नयन छोड़े स्वप्न ने खग ने बसेरा ले उषा ने किरण अक्षत हास रोली रात अंकों से पराजय राख धो ली राग ने फिर साँस का संसार घेरा स्रोत पुस्तक : संधिनी  रचनाकार : महादेवी वर्मा प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन संस्करण : 2012
2m 15s · Jun 4, 2021
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