
जन जन को जगाते हैं
Hindi Poems by Vivek (विवेक की हिंदी कवितायेँ)
Episode · 14 Plays
Episode · 14 Plays · 5:55 · Dec 31, 2021
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चलो इस जनवरी जन जन को जगाते हैं। बैर और नफरत की दीवार को, मिलकर मिटटी में मिलाते हैं। चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं। व्यर्थ का यह वाद विवाद, इसका प्रत्युत्तर उसका प्रतिवाद, पूर्वाग्रहों को मन से हटा, सब लोग करें सार्थक संवाद। तुम अपनी कहो, हम अपनी सुनाते हैं। चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं। व्यक्ति को है जब गुस्सा आता। विवेक कहीं है तब खो जाता। अपशब्द अनर्गल प्रलाप करे वो, मगर बाद में वो है पछताता। क्रोध में कहा सुना, साथ मिलकर भुलाते हैं। चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं। चाहे दिन हो या हो रातें, सुनने में आतीं कड़वी बातें, क्या करना कटुता से हमको, गिनती की जब हैं मुलाकातें। क्यूँ ना वाणी में गुड़ की, मिठास मिलाते हैं। चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं। वही चैन की नींद है सोता, जो मोती रिश्तों के पिरोता, तर्क जीतना बहुत सरल है, दिल जीतना मुश्किल होता। अपने आहत मित्रों को प्रेम से मनाते हैं। चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं। प्रभु सत्य मार्ग हमको दिखलाना, सबक सही सबको सिखलाना, याद रहे कभी भूल न पायें, बात खरी मन में लिखलाना। आँखों पर चढ़ा, शक़ का चश्मा हटाते हैं। चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं। आसान बहुत है मार्ग बताना, कठिन मगर स्वयं चल पाना, जैसा चाहो व्यवहार सभी से, वैसे पहले खुद करके जाना। दूसरों से पहले, आज स्वयं को समझाते हैं। चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं। हो बलवान या हो कमजोर, नरम हृदय हों न बनें कठोर, टूटी नहीं पर उलझ गयी है, सबको जोड़े जो नेह की डोर। दिल के उलझे धागों को फिर से सुलझाते हैं। चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं। भारत देश है गौरव अपना, क्यूँ न हो ये सबका सपना, भूख रहे न रोग रहे यहाँ, किसी को कभी न पड़े तड़पना। मिल कर संवेदना का, मरहम लगाते हैं। चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं। इस भूमि का इतिहास महान, राम कृष्ण का कर ले ध्यान, वीरों के शोणित से सिंचित है, मातृभूमि पर हो हमको अभिमान। गौरवपूर्ण गाथाओं को, पुनः याद दिलाते हैं। चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं। ये जीवन है बस एक बसेरा, सब उसका न तेरा न मेरा, सोचने वाली बात है आखिर, छोड़ रोशनी क्यों चुने अँधेरा। स्नेहघृत व विश्वास-बाती से, सत्य-दीप जलाते हैं। चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं। है शाश्वत सत्य सनातन धर्म, आज समझ लो इसका मर्म, अपनी पीड़ा तो सबको दुःख देती, पर पीड़ा हरना ही सर्वोत्तम कर्म। गीता हो या ग्रन्थ गुरु का, सब यही बतलाते हैं। चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं। स्वरचित और मौलिक विवेक अग्रवाल
5m 55s · Dec 31, 2021
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