
Geeta Darshan Vol-11 # Ep.137
Episode · 0 Play
Episode · 1:18:42 · Sep 22, 2023
About
DATES AND PLACES : JAN 03-14 1973 Eleventh Chapter from the series of 18 Chapters - Geeta Darshan Vol-11 by Osho. These discourses were given during JAN 03-14 1973. --------------------------------------- अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे।तदेव मे दर्शय देवरूपं प्रसीद देवेश जगन्निवास।। 45।।किरीटिनं गदिनं चक्रहस्तमिच्छामि त्वां द्रष्टुमहं तथैव।तेनैव रूपेण चतुर्भुजेन सहस्रबाहो भव विश्वमूर्ते।। 46।।श्रीभगवानुवाचमया प्रसन्नेन तवार्जुनेदं रूपं परं दर्शितमात्मयोगात्।तेजोमयं विश्वमनन्तमाद्यं यन्मे त्वदन्येन न दृष्टपूर्वम्।। 47।।न वेदयज्ञाध्ययनैर्न दानैर्न च क्रियाभिर्न तपोभिरुग्रैः।एवंरूपः शक्य अहं नृलोके द्रष्टुं त्वदन्येन कुरुप्रवीर।। 48।।हे विश्वमूर्ते, मैं पहले न देखे हुए आश्चर्यमय आपके इस रूप को देखकर हर्षित हो रहा हूं और मेरा मन भय से अति व्याकुल भी हो रहा है। इसलिए हे देव, आप उस अपने चतुर्भुज रूप को ही मेरे लिए दिखाइए। हे देवेश, हे जगन्निवास, प्रसन्न होइए।और हे विष्णो, मैं वैसे ही आपको मुकुट धारण किए हुए तथा गदा और चक्र हाथ में लिए हुए देखना चाहता हूं। इसलिए हे विश्वरूप, हे सहस्रबाहो, आप उस ही चतुर्भुज रूप से युक्त होइए।इस प्रकार अर्जुन की प्रार्थना को सुनकर श्रीकृष्ण भगवान बोले, हे अर्जुन, अनुग्रहपूर्वक मैंने अपनी योगशक्ति के प्रभाव से यह मेरा परम तेजोमय, सबका आदि और सीमारहित विराट रूप तेरे को दिखाया है, जो कि तेरे सिवाय दूसरे से पहले नहीं देखा गया।हे अर्जुन, मनुष्य-लोक में इस प्रकार विश्वरूप वाला मैं न वेद के अध्ययन से, न यज्ञ से तथा न दान से और न क्रियाओं से और न उग्र तपों से ही तेरे सिवाय दूसरे से देखा जाने को शक्य हूं।
1h 18m 42s · Sep 22, 2023
© 2023 Podcaster