Andruni Sair Lyrics
अपने आप ही से था मैं बैर, चाहा व्यक्त हो जा ठेहर
शकस वो अपने सा, मैं जो ढूँढ़ू हर सेहेर
जहाँ सोच ही थी वो मोच बाँधे बेड़ी दोनों पैर
जहाँ सोच ही थी वो मोच बाँधे बेड़ी दोनों पैर
थी ये एक अंधरूनी सैर
लिपटे लिबाज़ सा वो जो एहसास था
ढूँढ़ा तो पाया, मैं भी ना मेरे मेरे पास था
वो जो एक साँस सा दिल को मेरे खास था
खोया तो पाया, वही तो मेरे साथ था
क्यूँ भागा जाऊँ मैं परछाइयों से
क्यूँ कुछ ना चाहूँ अब इन रास्तों से
हूँ ढूँढ़ता, ढूँढ़ता, ढूँढ़ता
खुद को ऐसे मैं हूँ पूछता-पूछता
मुसाफिरों से अब क्यूँ
ऐ, खुदा तुझसे तो खैर, ये रिश्ता ना है गैर
बढ़ चलूँ बेखौफ़ सा, लांघे वक़्त का वो कहर
कर लूँ दोस्ती मैं खुदसे, जिससे रूठा हर पहर
कर लूँ दोस्ती मैं खुदसे, जिससे रूठा हर पहर
थी ये एक अंधरूनी सैर
ख्वाब थे आसमानों के, खामोश सा क्यूँ ज़मीन पे तू अब
इंतेज़ार फिर क्यूँ करें, अब उड़ जा होके बेफ़िकर तू
सोचता सा बैठा है क्यूँ, उम्मीद का हाथ थामलें तू अब
इंतेज़ार फिर क्यूँ करें, अब उड़ जा होके बेफ़िकर तू
Writer(s): Shravan Mantri<br>Lyrics powered by www.musixmatch.com
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3m 21s · Hindi